शनिवार, नवंबर 30, 2013

वो पुल..















वो पुल आज भी जहाँ का तहां खड़ा है,

किंकर्तव्यविमूढ़ की स्थिति लिए,

जैसे पहले हुआ करता था,

उस पुल पर जाने से आज भी जी घबराता है,

तमाम मजबूरियां गिना कर मैं उसे अकेले पुल पर छोड़ आया था,

वह मुझे जाते देखती रही,

शायद पुकारती तो रुक जाता,

नदी के उफान से शोर भी था,

मैं आज भी सोचता हूँ,


उसने मुझे पुकारा था की नहीं..

शनिवार, सितंबर 14, 2013

वक़्त..



 जेब में कुछ खनखनाते वक़्त पड़े थे,
खोने की आदत तो शुरू से ही थी,

शायद जेब का ही कुसूर था |

गुरुवार, मई 02, 2013

Golden time





वो मासूम थी,कमसिन थी,
उसकी छितिज को पार करने की उमंग,
मुझे कभी-कभी मायूस कर देती थी,
मुझे आज भी याद है वो दिन, मैं समंदर किनारे,
अकेले टहलने निकल जाया करता था,
और वो नाराज हो जाया करती थी.

सोमवार, फ़रवरी 18, 2013