..क्या करूँ..
जो भी है मन में..हाँ जो भी है मन में कह दो..
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मेरी पंक्तियाँ
सोमवार, सितंबर 10, 2012
विस्की..
उनकी सूरत भी आँखों में ठीक से छप नहीं पायी थी,
कमबख्त होश दगा दे गया,
नजरे मिलाने से यूँ ही नहीं डरा करते थे |
शनिवार, सितंबर 01, 2012
इस दिल का क्या-करूँ..
सुबह-सुबह आँख खुली तो देखा मेज पर,
कुछ खतों के कतरने रखी हुई थी,
याद आया कल रात ये बेरहमी से बाहर की गयीं थी,
शायद हवाओं के झोंको ने रुख बिगाड़ा होगा,
आजकल कुछ-कुछ दिल की सुनने लगा हूँ |
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