..क्या करूँ..
जो भी है मन में..हाँ जो भी है मन में कह दो..
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ये हैं मेरी कहानी
मेरी पंक्तियाँ
मंगलवार, अप्रैल 24, 2012
ये कैसी क्यों है..
गयी रात हवाएँ बड़ी जोर पर थी,
किताबों के पन्ने फडफडाने लगे,
मेरे यार की आदतें भी इन पन्नों के जैसी है,
कभी हवाओं से इधर कभी उधर ...
रविवार, अप्रैल 22, 2012
चुभन..
सुबह-सुबह आँख खुली तो देखा,
रात की बारिश सूखे पत्ते हरे कर गयी है,
छत पर देखा तो वो गीले बाल छांट रही थी,
और मेरी ओर देख कर मुस्कुरा रही थी,
आज की ही बात थी शायद,
ख्वाब याद कहाँ रहते हैं |
शुक्रवार, अप्रैल 06, 2012
तुम हो पास मेरे
उफ़ ये रात का तूफान ,
किताबो से दबे सूखे पुराने पत्ते उडाकर ले गया ,
जाने आज रात और क्या-क्या निकाल बाहर करेगा |
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