..क्या करूँ..
जो भी है मन में..हाँ जो भी है मन में कह दो..
पेज
HOME
ये हैं मेरी कहानी
मेरी पंक्तियाँ
शनिवार, फ़रवरी 25, 2012
मरीचिका
कुछ दूर और फिर तुम,
कुछ कदम और फिर तुम,
उफ़ ये नापाक मरीचिका,
जैसे सब कुछ लिखा हो,
चन्द कुछ घिसी-पीटी लकीरों में,
तो क्यों न खुरच कर बदल दूँ इन्हें |
नई पोस्ट
पुराने पोस्ट
मुख्यपृष्ठ
सदस्यता लें
संदेश (Atom)