शनिवार, दिसंबर 15, 2012

बारिश, रात और बस का सफ़र



         बेमन से बुकिंग एजेंट को फ़ोन कर टिकट करवाया, हमेशा की तरह गलत समय पर बारिश भी थम गयी, घर से निकलते वक़्त सावधानी से सम्बंधित सारे पाठ अच्छे से याद दिला दिए गए, हाँ-हूँ करते हुए मन में ख्याल आ रहा था की ऐसा कुछ हो जाए की बस में बहुत भीड़ हो और सीट न मिले या बस वाले आज किराया बढ़ाने की मांग को लेकर हड़ताल में बैठे हों, पर समय पर बस यात्रियों का इंतजार करते स्टैंड पर मिली, बारिश की वजह से बस में भी वीरानी दिखी और उनका हड़ताल करने का कोई इरादा भी नहीं दिखा, अधिकांश सीटें खाली थी, मनमाफिक खिडकी वाली सीट पर कब्ज़ा जमाया, ४०० किलोमीटर के रात सफ़र में खिड़की और हेड-फ़ोन ही मेरे दोस्त थे, टिकट के पैसे चुकाए और कान में हेड-फ़ोन ठूस कर आँख मूंद लिया, बस में नींद से मेरा कोई वास्ता ना था, बस में कम्पन से ही अंदाजा लगा लिया की बस की रफ़्तार बढ़ गयी है और अब शहर से बाहर निकल चुकी है |
            कुछ घंटे बाद बस की घरघराट से कम्पन हुआ और बस के रुकने का अंदाजा हुआ, आँख खोल के देखा तो बस के ड्राईवर और कंडक्टर बस से लगभग उतर चुके थे, बाहर हल्की बारिश हो रही थी, थोडा और खिड़की से देखने की कोशिश की तो ढाबे का बोर्ड दिखाई दिया, पर वो ढाबे का छोटा बच्चा नजर नहीं आया जो हर बार बस के पहूँचने पर बस के चारो ओर घूम-घूम कर बस को पीट-पीट कर लोगो को आवाज़ देता था “खाना नास्ता चाय कोल्ड्रिंक वाले उतरो भाई”, शायद  कंडक्टर को भी बस से नीचे उतर कर उस बच्चे की कमी का अहसास हुआ, फिर कंडक्टर बस के दरवाजे से सर अन्दर डालकर जोरो से आवाज लगाया “बस आधे घंटे रुकेगी जिसको खाना है खा लो भाई ” उसकी आवाज से बस में थोड़ी हलचल हुई शायद नींद में सोये हुए लोगो को उसकी आवाज अच्छी नहीं लगी, गहरी नींद में सोये हुए लोग करवट बदल कर सोने लगे और जो थोड़े जागे हुए थे वो बर्थ से सिर्फ सर बहार निकाल कर एक नजर देखा और फिर अपनी मांद में सोने लगे, २-४ लोग जो कम दुरी की यात्रा कर रहे थे और अपनी मंजिल के इंतजार में जागे हुए थे वो धीरे से उतर कर ढाबे की ओर चले गए, मैंने घडी को देखा तो मिनट और घंटे के कांटे १२ नंबर को छूने रेस कर रहे थे, बिलकुल मेरी और पराग की तरह, पर फ़तेह तो किसी और की थी |
            मैं भी समय पास करने के मकसद से बस से उतरा, ढाबे में सिर्फ गिने चुने लोग ही नजर आ रहे थे उनमे भी ढाबे के स्टाफ ही ज्यादा रहे होंगे | बारिश अभी रुकी नहीं थी, मैं भी उतर कर सीधे ढाबे के सामने पहुँच गया, एक व्यक्ति चाय बना रहा था उसी के इर्द-गिर्द कुछ लोग जमा हुए थे, मैं भी वहां खड़ा हो गया, बारिश की वजह से हल्की ठण्ड सी हो गयी थी, चूल्हे का तपिश अच्छा अहसास दे रही थी, शायद कुछ लोगों की वहां पर होने की वजह भी वही रही होगी, चाय वाला अपने पास कुछ लोगो को देख खुश लग रहा था, वह चाय को एक पात्र से उड़ेल कर हवा में ही दुसरे पात्र में उड़ेलता, थोड़ी देर दुसरे पात्र को चूल्हे में रख कर फिर दुसरे पात्र से पहले में उड़ेल कर चूल्हे पर रख देता, उसका यह करने का मकसद चाय बनाने से ज्यादा करतब दिखा कर लोगो को आकर्षित कर अपने चाय का प्रचार करना लग रहा था, चाय जब एक पात्र से निकलती होगी और हवा में तैरती होगी तो उसे आजादी लगती होगी और लगता होगा की अब चूल्हे के तपिश से राहत मिल गयी, पर उसे अब जाना दुसरे पात्र में होता है, और फिर तपिश सहनी पड़ती है, और फिर एक बार कुछ समय बाद हवा में आने पर उम्मीद जागती है और फिर उम्मीद टूटती होगी, और अन्न्ततः उसे समझ आ जाता होगा की सुख सिर्फ मरीचिका है दुखों का कोई अंत नहीं और ठीक मनुष्यों की तरह वो अपने मन को भ्रम में रखता होगा की सुख-दुःख का आना-जाना लगा रहता है |  
          पारुल को गए एक साल से ज्यादा हो चुके थे, पर मैं आज भी इस बात को पचा नहीं पा रहा था की अब वो किसी और की है और अपनी दुनिया में खुश है, शुरू में तो मुझे लगा पारुल की खुशी में ही मेरी खुशी है, पर शायद ये मन को भ्रम में रखनी वाली बात थी |   
           5 रूपए चिल्लर नहीं है क्या चाय वाले ने नाराजगी से चाय लेते एक मुसाफिर को कहा, उसकी नाराजगी चिल्हर न होने से ज्यादा उसके चाय कम बिकने पर थी, शायद पास खड़ा देख उसकी मुझसे भी चाय लेने उम्मीद थी, भीगने लायक बारिश न होते देख मै रोड की ओर निकल गया और रोड से कुछ दुरी बना कर खड़ा हो गया और सड़क पर आती जाती गाडिओं को देखता रहा, बारिश इतनी हलकी हो रही थी की काफी अंतराल में ही चेहरे पर बुँदे आ रही थी  जो बारिश न होने का भ्रम तोड़ रही थी | गहरा सन्नाटा पसरा हुआ था बस बीच-बीच में कहीं दूर से कुत्ते के भोंकने की आवाज आ जाती थी, रोड पर भी गाड़ियाँ बहुत ज्यादा अंतराल में आ-जा रही थी, उनकी आने की आवाज और रौशनी से काफी दूर से ही समझ आ जाता की कोई गाड़ी आने वाली है और जाने के भी कुछ देर बाद तक उनकी आवाज़ सुनाई देती रहती | कम ट्रेफिक और बारिश की रात होने की वजह से गाड़ियाँ काफी स्पीड से आ-जा रही थी, जब कोई गाड़ी गुजरती सड़क पर खाली पड़े पानी बोतल को काफी कुछ दूर उड़ा ले जाती थी, अब बोतल को देखना मेरा टाइम-पास बन चुका था, पहले तो मै ये देखने लगा की कब बोतल गाड़ी के पहियों को नीचे आता है, पर ये बोतल के पहियों के नीचे आने का खेल नहीं था |
              शायद बोतल किसी दिशा में यात्रा करके अपनी मंजिल तक पहूँचना चाहता था, एक दिशा से गाड़ी आती उसके जाने के हवा से वह काफी दूर तक खीचा चला जाता पर जब दूसरी दिशा से गाड़ी आती उसे फिर हवा उड़ाकर उसे उसके पहले वाले जगह ढाबे के सामने रोड पर पंहुचा देती, कभी दो गाडियों के लगातार एक ही दिशा में आने पर वह ढाबे से दूर निकल जाता पर, कुछ समय बाद उसकी नियति उसे फिर ढाबे के सामने वाली सड़क पर पंहुचा देती, ठीक मेरी तरह |
                बस के स्टार्ट होने की आवाज़ ने मेरी बेहोशी ख़त्म की, और मै अपनी सीट पर जाकर बैठ गया, बस ने एक-दो बार हॉर्न दिया, फिर कंडक्टर ने बस से उतरकर किसी को आवाज़ दी जो मैं हैडफ़ोन के कारण सुन नहीं पाया, और दिन दुनिया से बेखबर होते हुए फिर आँखे मूंद लेता हूँ, सीट पर हुई हलचल पर आँखे खोलता हूँ  तो पाता हूँ एक बुजुर्ग व्यक्ति मेरे बगल वाली सीट पर आकर बैठ गया है, जो अभी तक के सफ़र में जो खाली थी, फिर बस चल पड़ती है | मैं झुन्झुलाहट से आगे पीछे देखता हूँ, की ये कहाँ से टपक पड़े, बुजुर्ग अपने को सीट पर ज़माने में ही व्यस्त रहे और मेरी झुन्झुलाहट नहीं देख पाए, मैंने गौर किया उनकी ओर तो देखा उनकी उम्र ८० से ८५ रही होगी, मोटा चश्मा, दांतों वाले जगह पर गाल धंसा हुआ, मटमैला धोती और नील के धब्बों वाला सफ़ेद कुर्ता पहने हुए, हाथों में वही बुजुर्गों वाली छड़ी जिसका मुड़ा वाला सिरा अपना रंग खो चुका था, अपने बड़े से बैग को सीट के नीचे छुपाने के प्रयास में लगे हुए थे, अपनी झुन्झुलाहट व्यर्थ जाते देख मैं फिर आँखे मूंद लेता हूँ, कुछ देर सीट पर और हलचल होती है फिर बंद हो जाती है, और जूते में कोई चीज के स्पर्श का एहसास समझा देता है की बुजुर्ग का बैग सीट के नीचे डालने का प्रयास असफल हो चुका है और बैग पैर के पास रख कर संतोष करना पड़ रहा है |
               मेरा मन बड़ा ही विचलित था कभी मैं पारुल के बारे में सोचता की कैसी होगी, कभी मैं रात के लम्बे सफ़र में संघर्ष करते वृद्ध के बारे में सोचता, क्या होगा इस वृद्ध के मन में जो इसे इस उम्र में बारिश की रात इतना लम्बा सफ़र करने की प्रेरणा देता होगा, क्या अभी भी पारुल को मेरी शक्ल याद होगी, बोतल अभी पहियों के नीचे आया होगा या नहीं, ढाबे पर अभी दूसरी बस खड़ी होगी, चाय को फिर तपिश सहनी पड़ी होगी, एक बस के बाद दूसरी बस, फिर तीसरी,फिर चौथी, ओह दुखों का कोई अंत नहीं, कल सुबह फिर से बैंक  जाना पड़ेगा, अब मै गाने पर ध्यान देने लगता हूँ, इससे थोड़ी राहत मिलती है पहले एक गाना, फिर दूसरा, फिर तीसरा...ना जाने कितनी ही देर तक सुनता रहता हूँ |     
           कुछ समय बाद आँखे खोलकर देखता हूँ तो बस के दुसरे तरफ वाली सीट पर कोई लड़की बैठी हुई है, उसका चेहरा अँधेरे में ठीक से दिखाई नहीं पड़ रहा था, उसके साथ कोई पुरुष था, शायद उसका पति हो,  तभी बस किसी शहर में प्रवेश करती है और स्ट्रीट लाइट की रौशनी उसके चेहरे पर पड़ती है, उसका चेहरा मुझे पारुल सा दिखाई पड़ता है, आँखों पर विश्वास नहीं होता, मै फिर किसी स्ट्रीट लाइट के आने का इंतजार करता हूँ, हर एक स्ट्रीट लाइट की रौशनी से पारुल का खुबसूरत चेहरा आँखों में छपता जाता है, पर उसके चेहरे पर ख़ुशी देखकर उसके पारुल होने पर फिर शक होता है, मेरी कल्पना में तो जो शादी के बाद वाली पारुल थी वो इतनी खुश नहीं थी, पैर बर्फ से भी ठन्डे लगने लगते हैं |
            कॉलेज के आखिरी साल में ही पारुल के घर वालों ने उसे कह दिया था की अगले साल तुम्हारी शादी कर दी जाएगी, पारुल को यह कतई स्वीकार नहीं था पर घर वालों के सामने उसकी एक ना चली, कई बार मैंने पारुल के इस दर्द को महसूस किया था, जब भी स्त्रियों की स्वतंत्रता की बात आती पारुल का चेहरा देखने लायक होता, कितने जोश में वो सेल्फ डिपेंडेंट की बातें कहती, पुरुष-स्त्रियों की समानता की बातें करती, और मैं इस दौरान सिर्फ पारुल को देखता रहता, उसकी बातें ख़त्म होने के बाद उसके चेहरे की उदासी और कोई नहीं पढ़ सकता था, सब उसकी तारीफ करते पर वो मुझसे सिर्फ इतना कहती बातों में जीतने से क्या होता है, मै उसके वाक्य का मतलब अच्छी तरह समझता था |            
           मै बुजुर्ग व्यक्ति को पार करके पारुल तक पहुँचने के लिए उठ खड़ा होता हूँ, फिर अचानक उसकी खुशी देखकर हिचकिचाहट होती है और आभास होता अब कॉलेज वाला समय नहीं रहा, बस की गति अब कम होने लगती है और कुछ देर बाद धीरे-धीरे करके थम जाती है, पारुल और उसके साथ वाला व्यक्ति बस से उतरकर पैदल चलने लगतें हैं और मैं भी सोये हुए बुजुर्ग व्यक्ति को धीरे से पार कर उनके पीछे बस से उतरकर किंकर्तव्यविमूढ़ की स्थिति में पीछे चलने लगता हूँ, कुछ दूर पैदल चलने के बाद बस के स्टार्ट होने की धीमी आवाज़ सुनाई देती है जिससे बस से काफी दूर चले आने का अहसास होता है, कुछ सेकंड्स के लिए एक ही जगह पर जड़ होकर पारुल को एक बार फिर अपने से दूर जाता देखता हूँ, फिर पलट कर उलटी दिशा में तेज क़दमों से बस में वापस आ जाता हूँ, बुजुर्ग व्यक्ति मेरे आने तक जाग चुका था, और फिर से अपने बैग तो सीट के नीचे रखने के प्रयास में था, और मुझे आता देख अपनी कोशिश छोड़ देता है, अपनी सीट पर बैठने के बाद न चाहते हुए भी मुंह से बडबडा जाता हूँ “बस यहीं तक साथ था” बुजुर्ग व्यक्ति के कानों तक जर्जर आवाज पहुँचती है और कुछ ना समझ पाने वाले भाव लिए वह हैरानी भरी निगाहों से मेरी और देखता है और मुझे कुछ न कहता देख फिर अपनी आँखें मुंद लेता है और मैं भी |
              अगली आँख सूरज की नारंगी किरणों की वजह से खुलती है, और सबसे पहले मन में यही सवाल आता है मैं बस में सो कैसे गया, बगल वाले बुजुर्ग नदारद दिखते हैं जिससे शंका होती है कहीं मै स्वप्न तो नहीं देख रहा था, रास्ते में रोड के किनारे ग्रामीण मुसाफिर नजर आतें हैं जो बस को देख उत्साहित और नए सफ़र की शुरुवात से खुश नजर आतें हैं ठीक मेरी तरह |
             इस बार बड़े करीब से गुजरे वो, फिर भी,
             ना ही साथ चल सके, ना आवाज़ दे सके |

सोमवार, सितंबर 10, 2012

विस्की..



उनकी सूरत भी आँखों में ठीक से छप नहीं पायी थी,
कमबख्त होश दगा दे गया,


नजरे मिलाने से यूँ ही नहीं डरा करते थे |      

शनिवार, सितंबर 01, 2012

इस दिल का क्या-करूँ..














सुबह-सुबह आँख खुली तो देखा मेज पर,
कुछ खतों के कतरने रखी हुई थी,
याद आया कल रात ये बेरहमी से बाहर की गयीं थी,
शायद हवाओं के झोंको ने रुख बिगाड़ा होगा,

आजकल कुछ-कुछ दिल की सुनने लगा हूँ |

गुरुवार, अगस्त 23, 2012

..मुत्थु...


             मैं यहाँ ३० सालों से काम कर रहा हूँ, जानता हूँ यहाँ सब साहब लोग सिर्फ अपना जेब भरने का जुगाड़ करते है | मैं उसकी बातें मन से नहीं सुन रहा था,बीच-बीच में हाँ हूँ या सही है जैसे शब्दों का इस्तेमाल कर देता जिससे उसे लगे की मैं उसकी बातें सुन रहा हूँ |
               मुत्थु, नारायण का असली नाम नहीं था, बहुत कम लोग उसका असली नाम जानते होंगे, मुझे उसी ने बताया था जब वह पहली बार मुझे मिला था, मध्यम कद, भारी भरकम शरीर और काला रंग उसके नाम को सही जंचता था, एक पैर को लगभग घसीटते हुए धीरे-धीरे चलता था, जिससे उसकी एक पैर की चप्पल का निचला सिरा काफी घिस चुका था, वह अपनी उम्र ५७ बताता पर शरीर से ६७ की उम्र से कम का नहीं लगता, दफ्तर में था तो वह चपरासी था पर उससे बमुश्किल दिन भर में १-२ काम लिया जाता और सारा दिन वह अपनी स्टूल पर बैठे-बैठे काट देता |
            वह मेरे टेबल पर एक हाथ से कब्ज़ा जमाये बोले जा रहा था, फिर अचानक वह थोडा और पास आ गया और आवाज़ धीमी करके बोलने लगा, जैसे वह ख़ुफ़िया एजेंट है और कई जासूस उसकी बातें सुनने कान गडाए हैं, ये जो बड़े साहब है न उनके घर पर जो सोफा रखा है न वह दफ्तर का ही है, और कितने ही कुर्सी अपने घर पर ले जा चुके हैं, मैंने दिखावे के लिए विस्मय से कहा ”ऐसा क्या”, पर वह मेरे भाव समझ नहीं पाया और उल्टा उत्साहित हो गया और कभी आवाज़ धीमी तो कभी सामान्य आवाज़ में इधर-उधर की बातें बताता रहा और मैं बिना नजरें उठाये हाँ, हूँ करता रहा |
                  वैसे तो मैं दिन भर अपने काम में व्यस्त रहता पर मुझे अक्सर दफ्तर आने और जाने के वक़्त पकड़ ही लेता था, इसके अलावा अगर दिन में मैं कभी सुस्ताता दीखता तो वह तुरंत हाजिर हो जाता, उसकी कही बातों से लगता जैसे वह न्यूज़ चैनल से बातें रट कर आया है, वह चाहता की मैं भी अपनी कुछ राय दूँ ताकि बातचीत और रोचक बनाया जा सके, पर मैं उसकी बातों पर हाँ-हूँ करता रहता जिससे उसे लगे मैं उसकी बातों को सुनने का इच्छुक नहीं हूँ और वह जल्दी से दफा हो सके, कई बार उसके मुद्दे व तर्क इतने बकवास और स्तरहीन लगते की मैं सिर्फ तिलमिला कर रह जाता, पर कुछ बोलते नहीं बनता था,इसका कारण एक तो उसकी उम्र थी और दूसरी ये की मैं अक्सर कठोर शब्द बोलने से बचता था |
         आजकल कुछ दिनों से वह अपना बैठने का स्टूल ऐसी जगह सेट कर लिया था जहा से वह आसानी से मुझको देख सके जैसे वह किसी भी समय मुझे खाली छोड़ना नहीं चाहता था, दफ्तर ज्वाइन किये अब मुझे एक माह हो चुके थे, मैं काम और मुत्थु की बकवास बातें सुन कर पक चूका था, बीच-बीच में रिलेक्स होने के लिए दफ्तर से बाहर निकल जाता था जहाँ एक टी-स्टाल था, कुछ दिनों तक मुत्थु की आँखों में धुल झोकता रहा, सुबह दफ्तर देर से आना और देर तक काम करने के  कारण मुत्थु को अब मुझसे मिलने का समय नहीं मिलता था, अब लगा मुत्थु से अब छुटकारा मिल गया है, पर ये इतना आसन नहीं था, एक दिन देखा तो मुत्थु टी स्टाल पर पहले से ही मौजूद था, अब तो जैसे ही मैं टी स्टाल के लिए निकलता तो मुत्थु भी मेरे पीछे-पीछे पहुच जाता, एक-दो बार तो मैंने मुत्थु से चाय के लिए पूछ कर पिलाया पर अगली बार चाय स्टाल का मालिक खुद ही दो चाय भेजने लगा, चाय आर्डर करने से लेकर वापस दफ्तर पहुचने तक का समय अब मुझे भयावह लगने लगा, मुत्थु से पीछा न छूटता देख मैंने चाय स्टाल पर जाना छोड़ दिया, पर अब हालात और बिगड़ने लगे अब मुत्थु खुद दो चाय लेकर आने लगा, एक दो दिन तो मैंने उसे चाय वाले को देने के लिए पैसे दिए पर अगले दिन से मैंने उसे पैसे देना बंद कर दिए, पर इससे कोई फर्क नहीं पड़ना था, चाय वाले ने ७ दिन का बिल ऊपर से थमा दिया |
        आज बारिश की वजह से दफ्तर में काम ढीला ही था, मैं भी जल्दी से काम निपटा कर घर लौटने के फिराक में था की सामने से मुत्थु आता दिखा, दफ्तर में सिर्फ उसके चलने से होने वाले आवाज़ से मैं समझ जाता की अब मुत्थु आने वाला है, दफ्तर में अन्य लोग इतने व्यस्त रहते की उनके चलने से ऐसा लगता जैसे सिर्फ परछाई इधर से उधर हुई है, और मुत्थु के आने से ऐसा लगता जैसे काली घटा धीरे-धीरे आसमान पर छा रही है, और रौशनी कम होती जा रही है, ऐसा इसलिए भी लगता क्योंकि जैसे-जैसे वह पास आता जाता धीरे-धीरे दरवाजे से आने वाली रौशनी भी उसी अनुपात में कम होती जाती, उसके लंगड़ा कर धीरे-धीरे चलने से ऐसा भी लगता जैसे वह सोचते हुए आ रहा क्या-क्या उसे कहना है |
 आते ही उसने पहले महंगाई के मुद्दे पर सरकार को आड़े हाथ लिया, फिर क्रिकेट खिलाडियों के आचरण पर बातें करने लगा, मैं हमेशा की तरह सर गडाए अपने फाइलों में व्यस्त था, तभी दरवाजे पर आहट सुनकर मुत्थु और मैं दरवाजे की ओर देखने लगे, कुरिअर वाला लड़का था, उसने मुझे एक लिफाफा दिया और एक किताब दिया जिसमे मैं सिग्नेचर करने के लिए अपना नाम खोजने लगा, कुरिअर वाला लड़का मुत्थु की ओर देखने लगा, मुत्थु अभी चुप था और कुरिअर वाले के जाने का इंतजार कर रहा था, तभी कुरिअर वाले ने मजाकिया लहजे में मुत्थु से कहा “तेरी बीबी किसके साथ भाग गयी” मुत्थु बिना कुछ बोले हड़बड़ी में बाहर निकल गया, कुरिअर वाले ने मेरे चेहरे के मनोभाव पढ़ लिए थे, और बोलने लगा, और बोला साहब इसकी बात मत सुना करो पागल है, जब भी यह अपना भाषण शुरू करे सिर्फ इससे यह पूछ लिया करो “तेरी बीवी किसके साथ भाग गयी” तुरन्त रफूचक्कर हो जायेगा |मुझे कुरिअर वाले की बातें अविश्वसनीय लगी, मैं उसके जाने के बाद अपनी फाइल समेटने लगा और अपने केबिन के लाइट पंखे बंद कर निकल ही रहा था की मुत्थु ने मुझे फिर पकड़ लिया, मैं उससे पीछा छुड़ाने जल्दी-जल्दी गेट की ओर बढ़ने लगा पर मुत्थु भी कहा हार मानने वाला था मेरी बराबरी करने वह लगबग दौड़े जा रहा था, अब मै दफ्तर के बाहर निकल चुका था, मुत्थु अब भी मेरे पीछे चला आ रहा था और उसका न्यूज़ चैनल अभी भी चालू था, मैं उससे पीछा छुड़ाने के लिए कुछ भी करने को तैयार था, आखिर जो कुरिअर वाले ने मुझे कहने को कहा था मैंने कह दिया, उसके चलने के आवाज़ से मुझे पता चल गया की वह मुझसे पीछे छुट गया |
           दुसरे दिन मैं कल वाली घटना भूल चूका था, दोपहर तक तो कुछ पता नहीं चला, दोपहर तक तो मुझे पता नहीं चला, पर जब मुत्थु के स्टूल वाले जगह पर नजर गयी तब पता चला उसके स्टूल का जगह अब बदल गया है अब वह मेरे चेम्बर से नजर नहीं आता था, आज शाम को भी वह तंग करने नहीं आया तब विश्वास हुआ की एक सिरदर्द दूर हुआ |
             २-३ दिन बाद फिर कुरिअर वाला लड़का कुरिअर देने आया और ना चाहते हुए भी मैंने उससे मुत्थु के बारे में पूछ लिया, कुरिअर वाले लड़के ने मजाकिया लहजे में हंस-हंस कर बोलना शुरू किया, साहब आप नए हो आपको मालूम नहीं है पहले यह बहुत शराब पीता था ,सारी तनख्वाह सिर्फ पीने में उड़ा देता था, फिर एक दिन इसकी बीवी अपने बच्चों को लेकर इसको छोड़ कर कही चली गयी, इसने महीनो तक उसको ढूंढा पर वह कभी वापस नहीं आई, इसने अपना मानसिक संतुलन खो दिया और दिन रात नशे में रहता और पी कर अपने कमरे में ही पड़ा रहता, फिर एक दिन पता नहीं अचानक क्या हुआ हुआ इसको उसने शराब पीनी छोड़ दी और फिर से दफ्तर आना शुरू कर दिया, और ज्यादा बात करना शुरू कर दिया, अब करीब करीब १५ साल से ये ऐसा ही है, इसको भागने का सिर्फ एक ही तरीका है इससे पूछ लो “ तेरी बीवी किसके साथ भाग गयी ” वह तुरंत कट लेगा |
         मुत्थु के बारे में सुना तो कानों पर विश्वास नहीं हुआ, घर आने पर भी मैं उसके बारे में सोचता रहा, मुझे शहर में अपना पहला दिन याद आ गया, नयी नौकरी नया शहर, और सबसे पहले मुत्थु से मिला उसका मुझे दफ्तर तक ले कर जाना याद आया, उसकी होटल वाले को दी हिदयात याद आयी साहब को ऐसा खाना खिलाना वैसा खाना खिलाना |
         अगले दिन मुत्थु को स्टूल पर बैठा देख अपने पर शर्म आयी, उसका चेहरा वैसा ही था जैसे कुछ हुआ ही नहीं, बस वह मुझसे नजरे नहीं मिला रहा था और मै उससे, मैं अपनी कुर्सी पर बैठे फाइलों पर नजरें तो जरुर गडाया हुआ था पर सोच रहा था मेरा उस दिन ऐसा कहने के बाद उसने क्या किया होगा, हो सकता है वह बहुत दुखी हुआ हो और वो शराब दुकान गया हो और उसने शराब पी हो, मेरे सामने एक पागल व्यक्ति का चित्र आ गया जो लंगड़ा कर चलता है, बच्चे उसे चिढ़ा रहे हैं और वो लंगड़ा-लंगड़ा कर बच्चों को भागने की असफल कोशिश कर रहा है, आस पास के दूकान वाले सिर्फ एक बार नजर उठा कर दृश्य देख लेते है, अन्ततः वह दुखी होकर अपने घर की ओर वापस मुड जाता है, बच्चे उसे उसके घर के बाहर से ही आवाज़ लगा कर चिढाने की कोशिश करते हैं और वह बाहर के शोर को कम करने के लिए टीवी ऑन कर लेता है, बच्चे उसे ना चिढ़ता देख वापस अपने दुसरे खेलों में व्यस्त हो जाते है, उसका मन अकेलापन दूर करने के लिए संवाद चाहता पर कोई उसे सुनने को तैयार न होता, वह बड़ी समझदारी से दूसरों को अपने संवाद में उलझाने का प्रयत्न करता, पर अतिव्यस्त बुद्धिमान मनुष्य उसके बीवी के बारे में सवाल पूछते, उससे कोई जवाब देते ना बनता और वह चुप होकर अपनी अँधेरी खोली में छुप जाता |
       दफ्तर बंद होने का वक़्त हो चुका था एक-एक कर सभी बाहर निकल चुके थे मैंने भी अपने टेबल के सामान को लगभग बेहोशी की अवस्था में एक ओर समेटा और बाहर की ओर जाने लगा, मुत्थु लंगड़ाते हुए दफतर के अधखुले दरवाजे से अपने को गिरने से बचाने का प्रयास करता हुआ निकल रहा था, उसके दरवाजे से निकलते तक मै उसके पास पहुच चुका था, मैंने उसके कंधे पर हाथ रखा, विस्मय और डर का भाव लिए उसने अपना सर घुमाया, तब मैंने कहा मुत्थु स्वामी चाय पीने चलोगे | 

अपने आस-पास देखते चलो क्या हो रहा है,जिंदगी जीना सीख जाओगे |     

..क्या-करूँ..