सोमवार, दिसंबर 19, 2011

ख़ामोशी



आज सुबह रुमाल देख कर फिर तुम्हारी याद हो आई,
भुला करते थे कभी रुमाल जानबूचकर,
पर अब याद आने से डरते हैं,
वो दिन था हम सुन कर भी अनसुना कर गए थे,
लगा था पलटकर जवाब देंगे कभी,
सोचा नहीं था कभी दीदार को तरसेंगे,
ऐसा नहीं था, की चाहते नहीं थे हम भी,
पर ज़माने की खातिर खामोश रह गए जुबाँ से |

3 टिप्‍पणियां:

मेरे ब्लॉग पर आ कर अपना बहुमूल्य समय देने का बहुत बहुत धन्यवाद ..