रविवार, दिसंबर 20, 2009

गीता श्लोक

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोस्त्वकर्मणि॥

You have a right to “Karma” (actions) but never to any Fruits thereof.
You should never be motivated by the results of your actions,nor should there be any attachment in not doing your prescribed activities.


कभी-कभी हमारे जिन्दगी में ऐसी स्थिति आती है की हम किसी काम को असंभव समझ कर उसे कोशिश ही नहीं करते | अगर गीता के इस श्लोक पर ध्यान दे,तो हमें यह निर्णय लेने में कोई भ्रम नहीं होगा की क्या करे क्या न करे |